कोरोना से बचा सकता है विटामिन डी

कोरोना से बचने के लिए जो भी पॉसिबल है| वो सब हम कर रहे है| लेकिन और एक चीज है जो करने से जरुर हमारा कोरोना से बचाव होगा| वो चीज है विटामिन डी का सेवन करना| मैं यह दावा नही कर रहा हूँ की, विटामिन डी लेने से आपको कोरोना होगा ही नही| लेकिन विटामिन डी लेने के बाद अगर आपको कोरोना बाधित व्यक्तीसे संपर्क आता है| तो आपकी इम्युनिटी अच्छी होने के वजह से आपको कोरोना होने के चान्सेस कम रहेंगे| अगर आपको कोरोना का संसर्ग हो भी जाता है| तो जिस इन्सान के शरीर में विटामिन डी की लेवल नॉर्मल है| उसका शरीर कोरोना से लढ़ने के लिए ज्यादा सक्षम होगा| उसपर और इसके फेपडों पर कोरोना का परिणाम कम होगा| और इसके चलते कोरोना से मृत्यू नही होगा|

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    अगर आपके शरीर में विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में है| तो कोरोना होने के बावजूद लक्षण ही ना आये| ऐसे हो सकता है| या बहूत ही मामुली लक्षणों के बाद कोरोना ठीक हो जाए| कोरोना को टालने के लिए या कोरोना से बचने के लिए विटामिन डी कैसे काम करता है| श्वसन मार्ग के सभी जंतू संसर्ग मामुली सर्दी खाँसी से लेके निमोनिया तक सब जंतू संसर्ग रोखने के लिए| विटामिन डी का रोल बहुत महत्त्वपूर्ण है| जिनको अस्थमा और दमा की तकलीफ है| उन्हे विटामिन डी दिया जाये| तो अस्थमा की तकलीफ कम हो जाती है| और अस्थमा के अँटक कम आते है| हमारे देश में ९० प्रतिशत लोगों में विटामिन डी की कमी है| इसका कारण यह है की, खाने के सोर्स से विटामिन डी नही मिलता है| सिर्फ सुर्य प्रकाश से ही विटामिन डी मिलता है| सुबह १० से दोपहर ४ बजे तक आधा घंटा कम से कम कपडों में धूप में खडे रहेंगे या चलेंगे| यह भी हम करते है, तभी भी विटामिन डी पर्याप्त मात्रा में नही मिलता है| क्यूँ की हमारी त्वचा युरोपिय लोगों से काली है| काली त्वचा के वजसे सुरज की रोशनी मिलने के बावजूद विटामिन डी हमारे शरीर में घुस नही जाता है| कई सालों से हमारे देश में विटामिन डी की कमी की महामारी चल रही है|

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    इस महामारी को भगा ने के लिए विटामिन डी लेना जरुरी है| हर व्यक्ती को ६०००० आययू (इंटरनॅशनल युनिट) विटामिन डी लेना है| आपको हफ्ते में १ बार ८ हफ्तों के लिये लेना है| ८ हफ्ते होने के बाद हर महिने में ६०००० आययू विटामिन लेना है| खाना खाने के बाद विटामिन डी लेना है| खाली पेट विटामिन डी लेना नही है| विटामिन डी यह चरबी में पिघलनेवाला विटामिन है| इसलिए खाना खाने के बाद विटामिन डी लेने से पुरी आतो में शोषित हो जाता है| मांसपेशीया और हड्डी को मजबूत करने के लिए विटामिन डी जरुरी होता है| अगर आपकी गर्दन दर्द हो रही है| तो आपको विटामिन डी जरुरी है| विटामिन डी की कमी की महामारी को मिटाने के लिए सहयोग दिजिए|   

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किडनी स्टोन रुग्ण के लिए ७ डाइट टीप्स

किडनी स्टोन का इलाज करने के बाद भी दुबारा किडनी स्टोन होने के चान्सेस होते है| इसमें डाइट का महत्त्वपूर्ण रोल है| तो मैं आज आपको ७ डाइट टीप्स बताऊँगा|

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    पहली टीप्स बहुत जादा पानी पीना| दुसरी टीप्स खाने में जादा कॅल्शियम और बहुत जादा ऑक्झलेट जिसकी वजसे स्टोन बनते है| ऐसी खाने की चीजे डाइट में नही होना चाहिये| तिसरी टीप्स एक्स्ट्रा कॅल्शियम की गोलीयाँ ना खाये| डाइट में जितना कॅल्शियम मिलता है, उतना ही पर्याप्त है| चौथी टीप्स आपके डाइट में प्रोटीन की मात्रा| आपके डाइट में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त होनी चाहिए| लेकिन बहुत ज्यादा प्रोटिन होना किडनी स्टोन के पेशंट के लिए खतरनाक हो सकता है| और किडनी स्टोन बनाने के लिए जिम्मेदार हो सकता है| प्रोटिन पावडर बिल्कुल ना ले|

पाचवी टीप्स आपके डाइट में कॅल्शियम योग्य मात्रा में होना चाहिए, परंतु कॅल्शियम बिल्कुल भी नही होना चाहिए, ऐसे नही है| लोगों के मन में एक गलत फैमी है की, किडनी स्टोन के पेशंटने कॅल्शियम डाइट नही लेना चाहिए| हरी सब्जी, दुध के पदार्थ इसमे कॅल्शियम होता है| और ये चीजे कम मात्रा में खानी चाहिए| छठवी टीप्स विटामीन सी की गोलीयाँ नही खानी है| विटामीन सी ज्यादा लेने पर किडनी स्टोन बनने का कारण बन सकता है| आप रोज खाना खाते है, उसमे विटामीन सी पर्याप्त होता है| नींबू, मोसंबी, संत्रे इसमे विटामीन सी होता है| ये सब खा सकते है, पर विटामीन सी की गोलीयाँ ना खाये| सातवी टीप्स आप अपने डाइट में नमक कितना ले रहे है, ये भी महत्त्वपूर्ण है| ज्यादा नमक खाना इसमे सोडियम होता है, और ये किडनी स्टोन बनाने के लिए कारण बन सकता है| तो आप एक्स्ट्रा टेबल सॉल्ट कभी भी ना ले| ये सात टिप्स का पालन करो और किडनी स्टोन से मुक्त हो जाओ|

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किडनी स्टोन हो तो क्या खाना चाहिए

जिन को किडनी स्टोन है, तो क्या खाना चाहिए| हररोज नारियल का पानी एक या दोन ग्लास पी सकते है| मक्का भी ज्यादा खा सकते है| राईस या मुरमुरे, अननस, केला, बादाम, नींबू, गाजर, करेले की सब्जी खा सकते है| बहुत ज्यादा पानी पीना चाहिए|

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    मुरमुरे नाश्ते मे खा सकते है और उसमे प्रोटीन जादा होता है| केले मे पोटॅशियम होता है, इसलिए केला भी खाना जरुरी है| बादाम खाते वक्त उपर का छिलका निकालने ना भूले| किडनी स्टोन के पेशंट को नींबू खाना बहुत लाभदायक है| उसमे अल्कलाईन होता है|

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किडनी स्टोन हो तो क्या खाना नही चाहिए

किडनी में पत्थर होना यह आम स्वास्थ की बीमारी है| जिन को किडनी स्टोन है| या दुबारा किडनी स्टोन ना हो| इसलिए खाने में क्या नही खाना चाहिए|

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    ऑक्सलेट स्टोन और युरीन अँसिड स्टोन यह किडनी स्टोन के दो मुख्य प्रकार है| खाने के चीजों से ऑक्झलेट और युरिन अँसिड की मात्रा बढ़ जाती है| इसलिए किनडी स्टोन तैयार होते है|

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    पालक, लौकी, टमारटर, आँवला, चिकू, काजू, ककडी, मनके यह चीजे नही खानी चाहिए| कोबी, कद्दू, मशरूम, बैंगण की सब्जी इसके अलावा जो दूध के पदार्थ है| यह सब चीजे कम मात्रा में खानी चाहिए| मांसाहार भी बंद करना चाहिए| नमक कम मात्रा में खाना चाहिए| जादा नमक खाने से किडनी स्टोन बढ़ने के चान्सेस जादा होते है| तो ‘नो एक्स्ट्रा टेबल साल्ट’ कभी भी ना ले|

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https://www.youtube.com/watch?v=NO1Dn34r9y0

वर्कआऊट के बाद मसल्स दर्द होता है?

अगर आप बहोत दिनों बाद पहाड़ चढ़ रहे है या ट्रेकपर जा रहे हो| आपने नया-नया जीम जॉईन किया है, वेट लॉस कर रहे है| तो आप में से कही लोगोंने आपके मसल्स में अलग प्रकार का पेन होता है| जो एक हफ्ता या देढ़ हफ्ता चलता है और बाद में चला जाता है| इसे हम मेडिकल भाषा में ‘डिलेड ऑनसेट ऑफ मसल्स सोरनेस’ कहते है| जब आप जीम नया जॉईन करते है| तो कोई नये लोग होते है वो जीम आधे में ही छोड देते है|

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    मसल्स सोरनेस के मुख्य दो कारण क्या है? इसका पहले कारण जब आप वेट ट्रेनिंग करते है| कही दिनों से जो आपके अनयुज्ड मसल्स है ओ भी काम करना शुरू करते है| मसल्स पर तणाव आता है| इनको एनर्जी देने का काम ग्लायकोजन नाम का पदार्थ शरीर में करता है| ये ग्लायकोजन जब ब्रेक होता है| तो इसमें से लॅक्टिक अँसिड नाम का पदार्थ बाहर आता है| हमारे शरीर में लॅक्टिक अँसिड जमा होता है, इसलिए हमको मसल्स में दर्द होता है| जैसे हम कार्डिओ करते है| इसमें आमतौर पर ये नही होता है| मसल्स पे कुछ तणाव है| तभी लॅक्टिक अँसिड तयार होता है|

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    दुसरा कारण मसल्स पर तणाव आता है| तब ओ थोडेसे ब्रेक होते है| तुटते है तो दर्द देते है| जब वो तुटेंगे फिरसे रिग्रो करेंगे तभी मसल्स ग्रोथ होता है| तो आपके मसल्स में दर्द होता है| तो यह एक अच्छा लक्षण होता है| दर्द होगा तो समझिए आपका एक्सरसाइज सही तरीके से हो रहा है| जब मसल्स ब्रेक होते है| तब भी इनमें से ग्रोथ हार्मोन और टेस्टोस्टरॉन हार्मोन रिलीज होता है| ग्रोथ हार्मोन और टेस्टोस्टरॉन हार्मोन पुरे शरीर को काम आता है|

    मसल्स सोरनेस के लिए सबसे पहिला उपाय है| जीम शुरू करने से पहिले वार्मअप करना और खतम होने के बाद स्ट्रेच करना| पाच- पाच मिनीट समय देंगे| तो शुरूवात में मसल्स सोरनेस कम होगा| दुसरा उपाय है, अगर आप शाम को या किसीभी टाईम को एरोबिक एक्टिव्हिटी करेंगे| उसके बाद लॅक्टिक अँसिड निकल जायेगा और आपका दर्द अपने आप कम हो जायेगा|

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तिसरा उपाय है, जीम होने के बाद १० या १५ रुककर ठंडे पानी से नहाये| साधा पानी से नहाने के बाद मसल्स दर्द होना कम होगा| चौथा उपाय है, अच्छी नींद लेना| पहिला बार जीम जॉइन कर रहे हो तो रात को ८ घंटा नींद लेना जरुरी है| नींद इस दर्द का सबसे अच्छा इलाज है| पाचवा उपाय है, प्रोटीन का सेवन करना| दिन में दो से तीन नींबू पानी का सेवन करना| ये भी शरीर का मसल्स सोरनेस कम करने का काम करता है| छटा उपाय है, आप अलग-अलग दिन अलग अलग मसल्स ग्रुपस् को ट्रेन करे|

    मसल्स सोरनेस होता है तो क्या नही करना चाहिए| ये सबसे जादा महत्त्वपूर्ण है| कुछ लोक एक दिन ब्रेक लेकर एक्सरसाइज करते है| तो एक्सरसाइज नही रोखना ये भी एक मसल्स सोरनेस का एक उपाय है| वर्कआऊट से पहले जो दर्द होता है वो वर्कआऊट से ही चला जायेगा|       

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आयडियल वजन कितना होना चाहिए?

अपना आयडियल वजन कितना होना चाहिए? यह सवाल हर किसीके मन में होता है| इसका वैज्ञानिक उत्तर ढुंढने की कोशिश करते है| तो आज मैं आपको वो उत्तर बताना चाहता हूँ|

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    हर दस साल में आयसीएमआर (ICMR) की NIN संस्था नेशन वाईज सर्व्हे करती है| पुरुष-स्त्री का आयडियल वजन कितना होना चाहिए, यह वो संस्था तय करती है| २०१० में सर्व्हे किया गया था और अभी २०२० मे भी सर्व्हे हो गया है| एनआयएनने बताया की, १९ साल के उपर अडल्ट पुरुष का आयडियल वजन ६५ किलो होना चाहिए| स्त्री का आयडियल वजन ५५ किलो होना चाहिए| २०१० मे ये आकडे पुरुष ६० और स्त्री ५० किलो था| अभी पाँच आकडे बढ़ा दिये गये|

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    अगर पुरुष का वजन ६५ और स्त्री का ५५ किलो से जादा है| तो आपके शरीर में लाइफ स्टाईल डिजीज् आना शुरू हो जायेगा| इसमे ह्रदयरोग, डायबिटिस, उच्च रक्तचाप आदी बीमारी आपके शरीर में आने की संभावना जादा है| इसलिए वजन बढ़ जाये तो तुरंत वजन कम करने पर ध्यान देना चाहिए|  

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मास्क कसा वापरावा?

मास्क हा विषय पुस्तकात लिहिण्यासारखा झालेला आहे. तसेच वैद्यकीय विद्यार्थ्यांनी मास्कवर पीएचडी करण्यासारखा विषय झालेला आहे. मास्क हा घटक आता कायमस्वरुपी मानवाच्या आयुष्यासोबत जोडला गेलेला आहे. त्यामुळे काही गोष्टी अशा ठेवा, तब्येतीशी निगडीत आणि कोविडच्या संदर्भात ज्याच्यामध्ये प्रयोग करायला जाऊ नका. यामध्ये एक विषय आहे, तो म्हणजे मास्क.

    मास्क खरेदी करताना काय काळजी घ्यावी?

  • मास्कचे लेयर तपासून घ्या.
  • दोन ते तीन लेयरचे मास्क असावेत.
  • नोज वायर मास्क ज्यावर एक स्टिलची पातळ पट्टी असते, जेणेकरुन मास्क नाकावर व्यवस्थित बसतो.
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लहान मुलं किंवा मोठे व्यक्ती यांचा मास्क हा तीन लेयरचा असावा. कोरोनाच्या विषाणूला रोखण्यासाठी तीन लेयरचा मास्क हा गरजेचा आहे. लहान मुलांना चांगले शिकवले तर ते सेंसियर असतात. अगदी ६ ते ७ वर्षांच्या पुढची मुलं यांच्या मापाचे एन९५ मास्क अजून आलेले नाही, हे मोठं दुःख आहे. तर एन९५ या मास्कच्या नाकाला अडकवल्या जाणाऱ्या दोरीला गाठं मारली तर लहान मुलांना ते मास्क व्यवस्थित तोंडावर बसेल. कोरोनाची साथ पसरलेली असताना लहान मुलांना दोन एन९५ मास्क वापरले पाहिजे. तसेच कापडी मास्क वापरणार असाल तर त्यामध्ये तीन पदर असतील असे मास्क वापरणे.

    किती प्रकारचे मास्क आहेत?

  • कापडी मास्क
  • सर्जिकल मास्क
  • एन९५ मास्क
  • एफएन९५ मास्क

सर्जिकल मास्क काय असतो?

  • आरोग्य विभागाशी संबंधित क्षेत्रातल्या लोकांकडून अधिक वापर.
  • कापडी मास्कच्या तुलनेत अधिक सुरक्षित.
  • नोज वायर आणि अधिक लेयरवाले मास्क सुरक्षित

दरदिवशी ५० पेक्षा अधिक लोकांचा संपर्क होत असेल तर त्यांनी आधी सर्जिकल मास्क लावावा, आणि वरती एन९५ मास्क लावावा. अशा प्रकारे दोन मास्क लावले तर हे आदर्श असेल.

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कोणते मास्क वापरू नयेत?

  • जो मास्क चेहऱ्यावर व्यवस्थित बसणारा नसेल.
  • श्वास घेताना त्रास होणाऱ्या विशिष्ट कपड्याचे मटेरियल वापरू नयेत.
  • सिंगल लेयर मास्क टाळावा.

पदर, उपरणे, कपडे, रुमाल इत्यादी तोंडाभोवती बांधला तर तो मास्क झाला, असा खूप लोकांचा गैरसमज आहे. ग्रामीण भागातील ५० टक्के लोक अशा पध्दतीच्या मास्कचा वापर करताना दिसून येतात. मास्क लावल्यावर जीव गुदमरल्यासारखं ज्यांना वाटतं त्यांनी मास्क लावून ऑक्सिजनची पातळी चेक करा. ९७च्या पुढे ऑक्सिजन सॅच्यूरेशन राहत असेल, तर ही तुमची मानसिक समस्या असून शारीरिक समस्या नाही. मास्क हा सवयीचा भाग आहे. जेव्हा जेव्हा कोरोनाची लाट येईल, त्यावेळी एन९५ मास्क वापरणे गरजेचे आहे. कापडाचा मास्क वापरत असाल तर रोज एक सर्जिकल मास्क लावा. मग कापडाचा मास्क वापरा.

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    एन९५ हा सर्वसामान्यांना परवणारा नसेल तर गरिबातल्या गरीब माणसांने महिन्याला ५ एन९५ मास्क (एक एन९५ मास्कची बाजार किंमत २० रुपये) खरेदी करावे. स्वतःचा जीव वाचवायचा असेल तर तुम्हाला महिन्याला १०० रुपये बाजूला काढणे आवश्यक आहे. आता हे पाच मास्क महिनाभर कसे वापरावे हे बघुया.

    पाचही मास्कवर १ ते ५ नंबर टाकावे. एक मास्क वापरायला काढल्यावर जे चार मास्क वापरात नाही आहेत. ते उन्हामध्ये कपडे वाळवण्याचा चिमटा लावून वाळत घालावे. एक पूर्ण दिवस मास्क वापरून होईल, त्यानंतर दुसऱ्या नंबरचा मास्क वापरायला काढा. ७२ तासांमध्ये पहिल्या दिवशी वापरात काढलेला मास्कचे निजंर्तुकीकरण होते. मास्कची विल्हेवाट लावण्यासाठी त्यांना जाळलं गेलं पाहिजे. इतरत्र टाकलेले मास्क दिसतात हे अत्यंत चुकीचं आहे. याच्यातून संसर्ग वाढू शकतो. दुसरा पर्याय म्हणजे जमिनीत एक खोल खड्डा खणून मास्क पुरुन टाका.

    ७२ डिग्री सेंल्सियसच्या पुढे कोविड १९ हा विषाणू जिवंत राहत नाही. गरम पाण्यात मास्क टाकून धुवून पिळून सुकायला ठेवायचे. ब्रॅण्ड आणि हायफायच्या नादात मास्क खरेदी करून नका. तर आपण तीन पदरचा मास्क घरच्या घरी बनवू शकता. फिल्टरचे मास्क हे कुणीही वापरू नयेत. कारण फिल्टर मास्कमुळे स्वतः सुरक्षित राहता पण इतरांना बाधित करता. यात सर्वात जास्त धोका कुटुंबियांना होतो. मास्क हा फक्त स्वतःच्या सुरक्षिततेसाठी नाही आहे तर समोरच्याही सुरक्षिततेसाठी आहे. महाराष्ट्र शासनाच्या अन्न व औषध प्रशासनाने मास्कच्या किंमतींवर नियंत्रण आणलेले आहे. सर्जिकल किंवा एन९५ मास्क असू द्या, याच्या किंमती निर्धारित केलेल्या आहेत. तसेच त्या उपलब्ध देखील आहेत. मास्कची याच्यापेक्षा जास्त किंमत आढळून आली, तर तुम्ही जागृत ग्राहक राहून अन्न व औषध प्रशासनाला किंवा ग्राहक पंचायत यांना कळवले पाहिजे. 

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पोटाचा घेर कसा मोजावा?

वजनाबरोबर पोटाचा घेर हा किती असावा, याचे सुध्दा काही निर्देश आणि आयडियल व्हॅल्यूज आहेत. आपण दर दोन ते तीन महिन्यांने पोटाचा घेर मोजून बघणे आवश्यक आहे. आता हा पोटाचा घेर कसा मोजायचा याची आपण सविस्तर माहिती घेऊया.

    पोटाचा घेर मोजण्याची योग्य वेळ कोणती? सकाळी उठल्यावर शौचाला जाऊन आल्यावर पोटाचा घेर मोजायचा. घरातील एखाद्या व्यक्तीची मदत घेऊन बेंबीच्या खाली दोन बोटे / दीड इंचाखाली मेजरिंग टेप लावून पोटाचा घेर मोजायचा आणि किती आकडा येतोय तो लक्षात ठेवायचा. आता आपण पुरुष व महिलांसाठी आयडियल व्हॅल्यूज काय असतात ते पाहूया.

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    आयडियल व्हॅल्यूज दोन प्रकारच्या असतात. एक आदर्श व्हॅल्यूज आणि दुसरी जास्तीत जास्त वरची लिमिट काय असायला पाहिजे. आदर्श आकडे पुरूष ७८ सेंटीमीटर आणि महिला ७२ सेंटीमीटर हे आहेत. जास्तीत जास्त वरची लिमिट पुरुष ९० सेंटीमीटर व स्त्री ८० सेंटीमीटर तर याचा अर्थ काय ? पुरुषाच्या पोटाचा घेर हा ७८ ते ९० सेंटीमीटरच्या मधे असेल, तर तुम्ही ग्रे झोनमध्ये आहात. आता तुम्हाला वजन कमी करण्यासाठी हालचाल केली पाहिजे किंवा जागृत झाले पाहिजे की, आपले कुठेतरी काही चुकतंय का? हे तुम्ही तुमच्या डॉक्टरांना विचारले पाहिजे. तसेच स्त्रीया ७२ ते ८० सेंटीमीटरमध्ये ग्रे झोनमध्ये आहेत.   

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    पुरुष ९० व स्त्रीया ८० सेंटीमीटरच्या पुढे पोटाचा घेर असेल. तर आपली धोक्याची घंटा वाजलेली आहे. याचा अर्थ तुमच्या आयुष्यामध्ये जीवनशैलीच्या आजारांनी प्रवेश केला आहे. मधुमेह, डायबिटिस, ह्रदयरोग, उच्च रक्तदाब इत्यादी आजारांचे दार उघडायला सुरुवात झालेले आहे. पुरुष ९० व महिला ८० सेंटीमीटरच्या पुढे पोटाचा घेर गेला असेल. तर तुम्हाला युद्धपातळीवर वजन कमी करण्यासाठी प्रयत्न केले पाहिजे.

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https://youtu.be/sWUJI4rI8tg

कोरोनाचा नवा ओमिक्रॉन व्हेरिअंट दारात उभा… आता?

Corona's new Omicron variant standing in the doorway ... nowCorona's new Omicron variant standing in the doorway ... now

२६ नोव्हेंबर रोजी जागतिक आरोग्य संघटनेने ओमिक्रॉन या कोरोनाच्या नव्या संक्रमित प्रजातीला ‘व्हेरिअंट ऑफ कन्सर्न’ म्हणजे नोंद घेण्याजोगी प्रजाती म्हणून जाहीर केले आहे. दक्षिण आफ्रिका व युरोपसह नऊ  देशांमध्ये सध्या या नव्या प्रजातीमुळे नव्याने कोरोनाचे रुग्ण मोठ्या प्रमाणावर आढळण्यास सुरुवात झाली आहे. भारतात पहिली लाट ओसरल्यावर कोरोना संपल्याचा उत्सव सुरु होता, तेव्हा डेल्टाचे रुग्ण अमेरिका, इंग्लंड, युरोपमध्ये आढळण्यास सुरुवात झाली व त्यावेळच्या गाफीलतेतून मार्च महिन्यात भारतात दुसरी लाट आली.  आता भारतात काळजी वाऱ्यावर सोडून दिलेली असताना  हा ओमिक्रॉन व्हेरिअंट आला आहे.

कोरोनामध्ये अशी संक्रमणे अपेक्षित असली, तरी ओमिक्रॉनच्या संक्रमणामध्ये काहीसा वेगळेपणा आहे. अल्फा व डेल्टा ही भावंडं निर्माण झाली तेव्हा कोरोना विषाणूमध्ये दोन ते तीन ठिकाणी जनुकीय बदल झाले होते. पण ओमिक्रॉन मध्ये तब्बल ३० ठिकाणी अशी म्युटेशन्स झाली आहेत. त्यामुळे हे संक्रमण आधीपेक्षा जनुकीयदृष्ट्या जास्त घातक आहे. अशा संक्रमणामुळे एक तर विषाणू जास्त लोकांना संक्रमित करण्यास सक्षम होतो आणि लसवंत व्यक्तिलाही संसर्गित करू शकतो. अर्थात, असे होईलच, असेही नाही. कारण संक्रमण घातक ठरेल की, विषाणूला माघार घ्यावी लागेल, हे मानव समूह म्हणून त्याला कसा प्रतिसाद देतो व सार्वजनिक आरोग्याची त्या विरोधात धोरणे कशी असतात, यावरून ठरते.

डॉ. अमोल अन्नदाते यांचे लेख वाचा

अर्धवट लोकसंख्येला कोरोना संसर्गामुळे मिळालेली अर्धवट प्रतिकारशक्ती व अजून सर्व लोकसंख्येचे न झालेले लसीकरण अशा सामूहिक प्रतिकारशक्तीची ‘ ना घर का, ना घाट का’ स्थिती ओमिक्रॉनच्या आक्रमणासाठी एक आदर्श स्थिती आहे. आज देशात केवळ ३१ टक्के लोकांचे पूर्ण लसीकरण झाले आहे. २६ टक्के लोकांनी एक डोस घेतला असून, दुसरा डोस घेणे बाकी आहे. दुसरा डोस न घेतलेल्यांपैकी १०० दशलक्ष भारतीयांनी दुसऱ्या डोसची वेळ येऊनही हा डोस घेतलेला नाही. दुसऱ्या डोसची वाट पाहणारे व तारीख उलटूनही न घेणारे हे दोन गट भारताला ओमिक्रॉनच्या तोंडी  देऊ शकतात. अजून लसीकरणच न झालेले ४३ टक्के भारतीय हे तर ओमिक्रॉनसाठी सर्वात सोपे सावज!

संक्रमण कुठलेही व कितीही घातक असो पूर्ण लसीकृत देश हेच त्याला उत्तर असणार आहे. म्हणून लसीकरणाची गती अजून वाढवणे, मुदत उलटून गेलेल्यांना शोधून तो देणे व पहिला डोस झालेल्यांना त्याच तारखेला डोस देणे, यासाठी तीन पातळ्यांवर काम करणारे आरोग्य सेवकांचे गट व स्वतंत्र कृती आराखडे तयार करणे गरजेचे आहे. याशिवाय दुसरा डोस घेऊन सहा महिने होऊन गेलेल्यांना तिसरा बुस्टर डोस देण्याच्या निर्णयालाही काहीसा उशीर होतो आहे. जगात ३६ देशांमध्ये तिसरा डोस देण्यास सुरुवात झाली आहे. ओमिक्रॉनच्या पार्श्वभूमीवर ६०पेक्षा जास्त वय असलेले, इतर आजार असलेले व पहिल्या फळीत काम करणारे आरोग्यसेवक या तीन गटांना बुस्टर डोसचा निर्णय सरकारने लवकरात लवकर घ्यावा. ओमिक्रॉनचे अस्तित्व असलेल्या सर्व देशातून भारतात येणाऱ्या लोकांना १४ दिवस ठराविक ठिकाणी (गृह नाही) विलगीकरण, तपासणी अनिवार्य करणे गरजेचे आहे.  कोरोना रुग्णांचे जनुकीय वर्गीकरण वाढवून त्यात ओमिक्रॉन आढळतो का, याची सतत चाचपणी आवश्यक आहे. एवढे नुकसान झाले तरीही, मास्क, हात, धुणे व शारीरिक अंतर  या तीन मूलभूत गोष्टी जीवनशैलीचा भाग बनवण्यास आपण तयार नाही. ओमिक्रॉन अजून किती घातक ठरेल, हे काळच ठरवेल. पण त्यादृष्टीने आरोग्य सुविधांची तत्परता, बंद केलेले कोविड सेंटर्स कधीही सुरु करता येतील, अशी तयारी व औषधांचा पुरेसा साठा या बाबींकडे लक्ष देणे आवश्यक आहे. दुसरी लाट येण्याआधीची गाफीलता व दुसऱ्या लाटेदरम्यान झालेल्या चुका टाळून ओमिक्रॉनचा मुकाबला करावा लागेल.

सदरील माहिती आपण लोकमत मध्येही वाचू शकता.

डॉ. अमोल अन्नदाते

पालकांच्या मनातला भीतीचा अडथळा कसा ओलांडणार?

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मुलांना संसर्ग होऊन गेला असेल, तर मग लस कशासाठी? – असा प्रश्न विचारणाऱ्या पालकांना ‘लसवंत मुले म्हणजे सुरक्षित घर’ हे पटवून द्यावे लागेल!

कोव्हॅक्सिन लसी लहान मुलांना देण्यासाठी परवानगी देण्यात आली आहे. देशातील एकूण लोकसंख्येपैकी  ३५.३ % हिस्सा हा ०- १४ व ४१ % ० ते १८ वयोगटाचा असल्याने कोरोना महामारीचे नियोजन हे लहान मुलांच्या लसीकरणाशिवाय पूर्ण होऊ शकत नाही. म्हणून लहान मुलांसाठी लसीला परवानगी मिळणे महत्त्वाचे आहे; पण परवानगी मिळणे व देशातील प्रत्येक मुलापर्यंत लस पोहोचणे यातील अंतर मोठे आहे.

लहान मुलांसाठी लसीकरण मोहीम राबविताना सगळ्यात मोठे आव्हान असणार आहे – पालकांच्या मनातील भीती दूर करणे. मोठ्या व्यक्तींसाठी लसीकरण मोहीम सुरू होऊन १० महिने उलटून गेले; पण अजून मोठ्यांमध्ये भीती व गैरसमजांमुळे लस न घेतलेल्यांची संख्या बरीच आहे. लसीची परिणामकारकता व सुरक्षितता सिद्ध होऊनही अजून लसीच्या भीतीचे  पूर्ण उच्चाटन झालेले नाही. म्हणून बालरोगतज्ज्ञ, शाळा, शिक्षक व राजकीय, सामाजिक नेत्यांना प्रत्येक पालकाला आपल्या पाल्याला लस देण्यासाठी प्रेरित करणारी वेगळी सामाजिक मोहीम राबवावी लागणार आहे. सिरोर्व्हेप्रमाणे देशातील ५० ते ६० % लहान मुलांना हा संसर्ग होऊन गेला आहे. मग कोरोना संसर्ग होऊन गेला असताना लस कशासाठी,  असा प्रश्न पालक विचारत आहेत. संसर्ग होऊन गेला असला तरी कोरोना हा कांजण्याच्या आजाराप्रमाणे आयुष्यभर कायमची प्रतिकारशक्ती बहाल करीत नाही. तसेच नव्या व्हेरियंटस्ने परत संसर्ग होऊ शकतो.  कोरोनाच्या नैसर्गिक संसर्गापेक्षा लस शाश्वत व दीर्घकालीन प्रतिकारशक्ती देते.

५० ते ६० % मुलांना कोरोना होऊन गेला असे म्हटले  तरी ही ५० % मुले कोण हे शोधण्यासाठी प्रत्येकाची रक्त तपासणी करणे जिकिरीचे आहे. लहान मुलांमध्ये कोरोना सौम्य स्वरूपाचा असतो व मृत्युदर अत्यंत कमी आहे; पण तो अगदी शून्य नाही हे लक्षात घेता लहान मुलांना लस आवश्यक आहेच. बालमृत्यूची अनेक कारणे आ वासून उभी असताना त्यात कोरोनाच्या कारणाची भर परवडणारी नाही. लहान मुलांमध्ये कोरोनाचा आजार गंभीर नसला तरी एमआयएससी ही संसर्ग संपल्यावर चार आठवड्यांनी काही मुलांमध्ये होणारी गुंतागुंत जीवघेणी ठरत आहे व याचे उपचारही महागडे आहेत. हे टाळण्यासाठी लसीकरण हाच उपाय आहे. सौम्य आजार असला तरी लहान मुले घरातील इतर मोठ्या व्यक्तींना व त्यातच आजी-आजोबांसाठी संसर्गाचा महत्त्वाचा स्रोत आहे. दुसऱ्या लाटेनंतर मुलांचा घराबाहेर वावर वाढला आहे व  लक्षणविरहित मुले  सुपर स्प्रेडर ठरत आहेत. हे लसीकरण करण्याचे एक मोठे कारण आहे.

‘लसीकृत/लसवंत मुले म्हणजे सुरक्षित घर’ अशी नवी घोषणा आता लहान मुलांच्या कोरोना लसीकरणाबाबतीत शासनाने द्यावी. पहिल्या टप्प्यात हृदयाचे आजार, किडनीचे आजार, कॅन्सर, थॅलेसिमियासारखे रक्ताचे आजार, मतिमंद व मानसिकदृष्ट्या विकलांग व दिव्यांग मुलांना प्राधान्य देऊन लसीकरण सुरू करावे. यानंतर गरोदर मातांच्या मुलांना व तिसऱ्या टप्प्यात सर्व मुलांना अशा प्रकारे लसीकरण मोहीम पूर्ण करता येईल. वयोगटाच्या बाबतीत आधी १० ते १८ व त्यानंतर २ ते १० वर्षे असे प्राधान्यक्रम ठरविता येतील. २ ते ७ वर्षे वयोगटाला लस देणे हे बालरोगतज्ज्ञांचे विशेष कौशल्य आहे. या वयोगटासाठी देशभरातील बालरोगतज्ज्ञांची मदत घेत झपाट्याने लसीकरण होऊ शकते. कारण इतर लसीकरणासाठी रोज अनेक बालके बालरोगतज्ज्ञांकडे येतात. त्यावेळी आधी कोरोनाची लस व त्यानंतर इतर लसी अशी विनंती बालरोगतज्ज्ञ  पालकांना करू शकतात. 

लहान मुलांच्या बाबतीत मात्र लसीची किंमत कमी करून जास्तीत जास्त खाजगी बालरोगतज्ज्ञांना या मोहिमेत सामावून घेतल्यास लहान मुलांच्या लसीकरणाचे प्रमाण वाढेल. त्यासाठी सध्या खाजगी रुग्णालयाला लसीकरणाची परवानगी व लस साठा मिळविण्याची किचकट प्रक्रिया सोपी करावी लागेल. जोपर्यंत प्रत्येक जण सुरक्षित नाही तोपर्यंत कोणीही सुरक्षित नाही या तत्त्वाला अनुसरून हर्ड इम्युनिटी मिळविण्यासाठी लहान मुलांचा लसीकरण कार्यक्रम तातडीने राबवावा लागेल.

डॉ. अमोल अन्नदाते
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